यूरिया खाद की कमी: कारण, असर और समाधान
1️⃣ यूरिया की कमी क्यों होती है?
भारत में किसान भाई ज़्यादातर नाइट्रोजन की ज़रूरत के लिए यूरिया पर निर्भर हैं। लेकिन कई बार बाज़ार में यूरिया आसानी से नहीं मिलता। इसके पीछे कई कारण हैं:
- अचानक बढ़ी माँग – धान की रोपाई या गेहूँ की बुवाई के समय सभी किसान एक साथ यूरिया चाहते हैं।
- सप्लाई चेन की समस्या – फैक्ट्री से समितियों तक खाद पहुँचने में देरी।
- ब्लैक मार्केटिंग और जमाखोरी – कुछ डीलर जान-बूझकर खाद रोककर रखते हैं ताकि बाद में महँगा बेच सकें।
- इंपोर्ट पर निर्भरता – भारत अपनी ज़रूरत का 25–30% यूरिया बाहर से मँगाता है।
- युद्ध और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति – Russia–Ukraine जैसे संकट के कारण प्राकृतिक गैस महँगी हुई, जिससे यूरिया उत्पादन और आयात महंगा/दुर्लभ हुआ।
- किसानों की आदत – ज़्यादातर किसान सिर्फ़ यूरिया पर निर्भर करते हैं, जबकि दूसरी खादें (DAP, NPK, सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक खाद) कम उपयोग होती हैं।
2️⃣ नीम-कोटेड यूरिया क्या है और क्यों ज़रूरी है?
2015 के बाद भारत में निर्मित यूरिया का नियमतः नीम-कोटेड होना अनिवार्य कर दिया गया। नीम-कोटिग से यूरिया धीरे-धीरे घुलता है और नाइट्रोजन की बर्बादी कम होती है।
- यूरिया धीरे-धीरे घुलता है → पौधे को लंबे समय तक पोषण मिलता है।
- नाइट्रोजन लॉस 30–40% तक घटता है।
- नशा/इंडस्ट्रियल गलत उपयोग पर रोक लगती है।
3️⃣ Nano Urea: नई पीढ़ी का समाधान
Nano Urea (IFFCO द्वारा विकसित) एक तरल नाइट्रोजन फॉर्मूलेशन है जिसे पत्तियों पर स्प्रे करके दिया जाता है।
- 500 ml की बोतल ≈ 45 kg यूरिया बोरी के प्रभाव के बराबर बताई जाती है।
- पत्तियों पर स्प्रे करने पर पौधा तुरंत नाइट्रोजन सोख लेता है → बर्बादी कम।
- ट्रांसपोर्ट और स्टोरेज आसान — मिट्टी की लवणीयता और प्रदूषण कम।
⚠️ ध्यान: Nano Urea बेसल डोज़ (बीज/रोपाई के समय) का विकल्प नहीं है — यह टॉप-ड्रेसिंग के लिए अधिक उपयुक्त है। बेसल के लिए DAP, NPK, गोबर खाद आदि ज़रूरी हैं।
4️⃣ यूरिया की समस्या से कैसे निपटें?
निम्न व्यावहारिक कदम अपनाकर किसान यूरिया पर अनावश्यक निर्भरता कम कर सकते हैं और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रख सकते हैं:
- संतुलित खाद — सिर्फ यूरिया न दें; DAP, MOP, NPK और सूक्ष्म पोषक तत्वों (Zn, B आदि) का उपयोग करें।
- दलहनी फसलें — चना, मूंग, अरहर जैसी फसलों को फसली चक में शामिल करें; ये मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ती हैं।
- हरी खाद (Green Manure) — सनई/ढैंचा जैसी फसलें जुताई से पहले मिट्टी में मिलाएं।
- जैविक खाद और बायोफर्टिलाइज़र — गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट; Rhizobium/Azotobacter/PSB का उपयोग बढ़ाएं।
- आधुनिक तकनीक — Neem-Coated Urea और Nano Urea सही समय पर इस्तेमाल करें; Leaf Color Chart (LCC) से पौधे की स्थिति नापें; fertigation अपनाएँ।
5️⃣ किसानों के लिए सलाह (अमल में लाने योग्य)
- PACS/समिति से सीधे खरीदें, बिचौलियों से बचें और रसीद अवश्य रखें।
- जरूरत के हिसाब से स्टॉक रखें — एक साथ बहुत सारी बोरी उठाने से बचें।
- क्षेत्रीय कृषि विस्तार अधिकारी से soil test कराएं और उसी recommendation के अनुसार खाद दें।
- mFMS ऐप और Kisan Call Centre (1800-180-1551) पर उपलब्धता/शिकायत दर्ज करें।
🌾 नीम-कोटेड यूरिया क्यों कम दिखता है?
- नीम-कोटेड यूरिया बड़ी सरकारी/प्रमाणित कंपनियों द्वारा पैक होता है (IFFCO, KRIBHCO, NFL, RCF, Chambal)।
- सीज़नल मांग और लॉजिस्टिक बाधाओं के कारण स्टॉक गाँव तक समय पर नहीं पहुंचता।
- डीलर/बिचौलियों द्वारा जमाखोरी से असली किसान तक आपूर्ति प्रभावित होती है।
- आयातित plain urea पर सरकारी नियंत्रण होने से plain सीधे किसान तक नहीं पहुंचता।
📝 निष्कर्ष
यूरिया की कमी का समाधान सिर्फ़ सप्लाई बढ़ाना नहीं है — साथ ही किसानों की आदतों में बदलाव, संतुलित खाद-प्रयोग और आधुनिक तकनीक की स्वीकृति भी ज़रूरी है। संतुलित खाद + जैविक खाद + Nano Urea/Neem-Coated Urea + सही निगरानी (LCC, soil test) — यही लंबे समय का समाधान है।
