WhatsApp For NEWS & ADS

WhatsApp For NEWS & ADS 9669966214

साल भर में छत्तीसगढ़ सरकार ने मारी पलटी, कंप्यूटर ऑपरेटर फिर हुए परेशान

साल भर में छत्तीसगढ़ सरकार ने मारी पलटी, धान खरीदी कंप्यूटर ऑपरेटर के साथ हुआ छलावा।


छत्तीसगढ़ सरकार ने धान खरीदी केंद्रों में कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटरों को लेकर एक साल के भीतर ऐसा निर्णय पलटा है, जिससे नाराजगी बढ़ना तय है। पिछले वर्ष सरकार ने 12 माह के मानदेय का ऐलान कर इसे बड़ी उपलब्धि की तरह प्रचारित किया था, लेकिन इस वर्ष नीति बदलते हुए ऑपरेटरों की सेवा अवधि को फिर से सिर्फ 6 माह कर दिया गया।



📌 पिछले साल क्या हुआ था?


16 अक्टूबर 2024 को हुई कैबिनेट बैठक में बड़ा फैसला लिया गया था।


  • डेटा एंट्री ऑपरेटरों को 12 माह के मानदेय की मंजूरी
  • प्रति माह ₹18,420 के हिसाब से पूरे साल का भुगतान

इसके लिए ₹60.54 करोड़ का प्रावधान

सरकार ने इसे "स्थिरता और सम्मान" देने वाला निर्णय बताते हुए जमकर प्रचार किया।



📌 इस वर्ष क्या बदला?


15 अक्टूबर 2025 को जारी धान खरीदी नीति में सरकार ने यू-टर्न लेते हुए कहा—


  • ऑपरेटरों की नियुक्ति सिर्फ 6 माह के लिए की जाएगी
  • मानदेय रहेगा ₹18,420 प्रतिमाह
  • आगे की अवधि के लिए समितियाँ चाहे तो अपने स्तर पर रखें
  • जिन केंद्रों में “अनियमितता” पाई गई, वहाँ नए ऑपरेटर लगाए जाएंगे
  • नियुक्ति व स्थानांतरण का अधिकार कलेक्टरों को दिया गया



📌 सवाल उठ रहे हैं:


1. जब पिछले साल 12 माह का भुगतान किया गया था, तो इस साल सिर्फ 6 माह क्यों?

2. क्या यह अस्थायी रोजगार देकर सिर्फ चुनावी वादे पूरे दिखाने की कोशिश थी?

3. जो ऑपरेटर लगातार 10–15 वर्षों से काम कर रहे हैं, उनका भविष्य फिर अधर में क्यों?

4. क्या अनियमितता का ठीकरा फिर इन्हीं कर्मचारियों पर फोड़ा जाएगा?

वादे बनाम हकीकत” 

सरकार ने 12 माह को बड़ी उपलब्धि की तरह पेश किया था—

→ अब पलटी मारकर फिर 6 माह घोषित कर दिया। “विश्वसनीयता बनाम राजनीतिक उपयोग”

> “चुनावी साल में 12 माह का मानदेय घोषित कर सरकार ने श्रेय लिया, लेकिन सत्ता संभालते ही उसी फैसले को आधा कर दिया गया।”



📌 पृष्ठभूमि बताती है असल दर्द


2007 से संविदा पर रखे गए ऑपरेटर आज तक यह नहीं जान पाए कि वे मार्कफेड, समिति या खाद्य विभाग के कर्मचारी हैं।


कभी 5400 रुपए मासिक वेतन से शुरुआत, बढ़ते काम लेकिन सुविधाओं में सुधार नहीं।


कई बार आंदोलन, ज्ञापन और धरना—पर स्थायी समाधान नहीं।


पिछले साल की घोषणा को “बड़ा फैसला” कहा गया, लेकिन इस बार उसे आधा कर दिया गया।



📌 मंशा पर उठ रहे सवाल

ऑपरेटरों का कहना है कि—

> “पहले 12 माह बताकर वाहवाही लूटी गई और अब 6 माह कर दिया गया। अगर यही करना था तो फिर इतना प्रचार क्यों किया गया?”

📌 इतिहास दोहर रहा है

2007 से संविदा पर रखे गए ऑपरेटरों की स्थिति हमेशा अस्थायी रही।

रमन सिंह सरकार के दौरान नियमितीकरण का आश्वासन मिला, भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार में भी कई वादे किए गए, लेकिन हर बार स्थायी समाधान नहीं हुआ।

भाजपा सरकार ने पिछले साल 12 माह का फैसला करके वाहवाही ली, और इस साल वही निर्णय आधा कर दिया।


📌 अब क्या हो सकता है?

माना जा रहा है कि संघ फिर से आंदोलन की तैयारी कर सकता है।

धान खरीदी, बीज-खाद वितरण, पंजीयन, पीएम फसल बीमा जैसी योजनाएँ प्रभावित होना तय है।

जो कर्मचारी सरकार की हर योजना की रीढ़ हैं, उन्हीं को अस्थायी कर्मचारी मानकर हर साल असुरक्षा में धकेला जा रहा है।


क्या कहते है ऑपरेटर 

2007 से लेकर 2024 तक हर सरकार ने इन्हें सिर्फ “टाइमपास” किया।

“रमन सरकार में नियमितीकरण का आश्वासन मिला, भूपेश सरकार ने वेतन बढ़ाने की बात की, अब विष्णुदेव सरकार ने 12 माह के फैसले को 6 माह में बदल दिया।

 मानसिक असुरक्षा” और “भविष्य का संकट”

इन कर्मचारियों की सामाजिक स्थिति, उम्र और भविष्य की चिंता 

“15 साल की सेवा के बाद भी इन कर्मचारियों को यह नहीं पता कि अगले छह महीने नौकरी रहेगी या नहीं।”

यदि ये हड़ताल पर जाते हैं तो किसानों पर असर दिख सकता है।

“यदि ऑपरेटर हटे, तो किसान का पंजीयन रुकेगा, फसल तुलाई रुकेगी और भुगतान अटक जाएगा।”

 यह बजट बचाने का तरीका है?

क्या यह भर्ती से बचने की रणनीति है?

क्या चुनाव के बाद रुख पलटा गया?


Post a Comment

0 Comments

Below Post Ad